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Story of Maa Dhumawati one of the 10 incarnations of Goddess Maa Durga

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माँ दुर्गा के 10 महाविद्या रूपों मे से एक माँ धूमावती की कहानी और पूजा का विधि विधान

Vikram Singh
Last updated: 2024/06/15 at 11:59 AM
Vikram Singh Published June 15, 2024
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Story of Maa Dhumawati one of the 10 incarnations of Goddess Maa Durga
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जब माता सती ने अपनी देह को स्वयं ऊर्जा एवं योग शक्ति से नष्ट करने के उपरांत निकले धुएं से विग्रह बना। उस विग्रह रूप में माता धूमावती का अवतरण हुई। 

Story of Maa Dhumawati one of the 10 incarnations of Goddess Maa Durga
माँ धूमावती जयंती 2024 :सप्तम महाविधा देवी माँ धूमावती की जयंती इस वर्ष ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन यानी 14 जून को मनाई जा रही है। वैदिक पंचांग के अनुसार इस इस तिथि पर दुर्गा अष्टमी भी है।

क्या है माँ धूमावती के अवतरण की कथा?

दश महाविद्याओं में से माँ धूमावती का स्थान 7वा है। माँ धूमावती सारी देवियों मैं सबसे प्राचीन मानी गयी हैं क्योंकि माँ धूमावती प्रौढ़ रूपा हैं। माँ धूमावती का रूप वैसा विचलित कर देने वाला है। माँ धूमावती के प्राकट्य की कथा अन्य दश महाविद्याओं में से एक विलक्षण कथा है। माँ धूमावती के अवतरण की दो कथाएं है। हर कथा का अपना-अपना आध्यात्मिक महत्त्व है। पहली कथा माँ सती के दक्ष यज्ञ विनाश से जुड़ी है। जब माता सती ने अपनी देह को स्वयं ऊर्जा एवं योग शक्ति से नष्ट करने के उपरांत निकले धुएं से विग्रह बना। उस विग्रह रूप में माता धूमावती का अवतरण हुआ।
“माँ धूमावती की सवारी काग और हाथों में सूपा है। माता सृष्टि में प्रलय पूर्व और निर्माण पूर्व की रिक्तता को दर्शाती है।”
दूसरी कथा अनुसार एक बार माता पार्वती को तेज भूख लगी थी। माता ध्यान मग्न शिव शंकर के पास गई। उनसे ध्यान से बाहर निकल कर भोजन का प्रबंध करने के लिए कहा। लंबा समय बीत गया पर भगवन ने समाधी न तोड़ी। भूख से व्याकुल माँ पार्वती ने बिना अधिक विचार किये भगवान भोले को निगल लिया। इसके पश्चात् माता पार्वती का रंग शिव के कंठ में फंसे हलाहल के कारण काला पड़ने लगा; तथा माता से धुआं निकला। माता पार्वती का रूप कुरूप तथा बूढ़ा हो गया। इस रूप में माता के खुले केश के साथ माता भयानक दिखने लगी। माँ धूमावती शरीर धुआं निकलने की वजह से माता धूमावती कहलाई। भगवान शिव ने क्रोध वश माता को श्राप दे डाला। इस रूप में माता धूमावती की पूजा सौभाग्यशाली स्त्रियां नहीं करेंगी। माता की साधना करने वाला किसी भी प्रकार के अदालती मुकदमो में विजय दिलाता है। माँ धूमावती से प्रार्थना करने से तंत्र-मंत्र जादू टोने से भी छुटकारा मिलता है। अपार शक्ति वाले शत्रुओ का नाश करने लिए माँ धूमावती को प्रसन्न करने के लिये यज्ञ किया जाता है। बीते युगों में माँ धूमावती का ध्यान ऋषि परशुराम, अंगिरस, दुर्वासा, भृगु, जमदग्नी और अगस्त्य जैसे क्रोध मय ऋषि करते थे। माता धूमावती का सुप्रसिद्ध मंदिर मध्य प्रदेश के दतिया में माँ पीताम्बरा पीठ में दुर्लभ मंदिर है। काशी, सीतापुर और नेपाल में भी माता धूमावती का मंदिर है।

माँ धूमावती की पूजा किसे करनी चाहिये?

माँ धूमावती की साधना अत्यंत असरल है। माँ की पूजा में नियम विधान और मंत्रोच्चार के विशेष ध्यान देना आवश्यक है। इनका ध्यान अच्छे गुरु के मार्गदर्शन में लेना उचित है। वैसे माँ अपने भक्त के हृदय से निकली करुण पुकार भी सुन लेती हैं। इसीलिए माता धूमावती की पूजा के लिए काले वस्त्र में काले तिल का दान चमेली य्या किसी भी सुगन्धित सफेद फूल के साथ अर्पित करना चाहिए। केवल इतना करने से माता प्रसन्न हो जाती है।

माँ धूमावती को क्या भोग लगाएं?

माँ धूमावती भूख लगने की स्थिति से जन्मी है। इस परिस्थिति से इन्हें नमकीन वस्तुओं का भोग लगाना चाहिए। माता को नमकीन में प्याज पकौड़े, समोसे या सेव इत्यादि भोग लगाई जाती हैं।

माँ धूमावती की पूजा का शुभ समय, तिथि और महूर्त:

माता धूमावती की पूजा का शुभ समय ब्रह्म महूर्त 14 जून को 4:00 बजे से 4:43 बजे तक है। इसके पश्चात् अभिजीत महूर्त 11:54 से 12:49 बजे तक है।

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